Wednesday 16 December 2020

हम राज्य लिए मरते हैं

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हम राज्य लिए मरते हैं

 











1.  निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो पंक्तियों दीजिए_

 

(1) प्रस्तुत गीत में उर्मिला किसकी प्रशंसा कर रही है?

1.  उत्तर:  प्रस्तुत गीत में उर्मिला किसानों की प्रशंसा कर रही हैl



 

(2)  किसान संसार को समुद्र कैसे बनाते हैं?

उत्तर: किसान संसार को अपनी मेहनत से समुंद्र बनाते हैंl

 

(3)  किसान किस प्रकार वृक्षम रूपी समुद्र को धीरज से तैर कर पार कर पाते हैं?

उत्तर: किसान मेहनत से  रूपी समुंद्र को धीरज से तौर पर पार करते हैंl

 

(4)  किसानों का अपने पर गर्व करना कैसे उचित है?

उत्तर: किसानों को अपने पर गर्व करना उचित है क्योंकि हर रोज उनके त्योहार और मेले हैंl

 

(5)  किसान व्यर्थ के वाद विवाद को छोड़कर किस धर्म का पालन करते हैं?

उत्तर: किसान व्यर्थ के वाद विवाद को छोड़कर धर्म की मूल बात को समझते हैंl

 

(6) "हम राज्य के लिए मरते हैं" मी राज्य के कारण होने वाले किस कलहै की बात कहना चाहती है?

उत्तर:  उर्मिला गृह कलह की बात कहना चाहती हैl

 

2.  निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या करें:

 

(1)  यदि वे करें, उचित है  गर्व

      बात-बात में उत्सव पर्व,

     हमसे प्रहरी रक्षक जिनके,

     वह किससे डरते हैं?

    हम राज्य लिए मरते हैंl

 

प्रसंग:  प्रस्तुत  पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक 10 में श्री मैथिलीशरण गुप्त के महाकाव्य 'साकेत' के नवम सर्ग में से ली गई हैl इसमें 'साकेत' की नायिका उर्मिला  किसानों के जीवन की प्रशंसा करती हैl

 

व्याख्या:  उर्मिला कहती है कि ऐसे मेहनती किसान यदि किसी बात पर गर्व करते हैं तो उचित हैl ऐसे सरल जीवन जीने वाले को तो रोज ही मेले और उत्सव है अर्थात वे खुशहाल हैl आगे वह राजा की प्रशंसा करते हुए कहती है कि जिन के रक्षक हम जैसे हो उनको किसी बात का डर होना भी नहीं चाहिएl यदि प्रजापालक समर्थ है तो उसकी प्रजा के लिए रोज ही उत्सव हैl

 

(2)  करके मीन मेख सब और,

       क्या करें बुद बाद कठोर,

      शारवामय बुद्ध तजकर वे मूल धर्म धरते हैं

       हम राज्य लिए मरते हैंl

 

प्रसंग:  प्रस्तुत  पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक 10 में श्री मैथिलीशरण गुप्त के महाकाव्य 'साकेत' के नवम सर्ग में से ली गई हैl इसमें 'साकेत' की नायिका उर्मिला  किसानों के जीवन की प्रशंसा करती हैl

 

व्याख्या:  उर्मिला कहती है कि हम लोग जो अपने आप को ज्ञानी समझते हैं वे हर बात में नोक-झोंक करते हैं अर्थात हम ऐसे कठोर वचन कह कर दूसरों को दु:खी करते हैंl  चाहे इसमें हमें कुछ भी हासिल ना हो परंतु अपनी  विद्ता के प्रदर्शन में हम कई कार्य कर जाते हैं जो दूसरों को हानि पहुंचाते हैंl परंतु जो कृषक वर्ग है वह आपसी वैर विरोध वाली बातों से कोसों दूर हैl वे इस प्रकार की बुद्धि को त्याग कर धर्म की मूल बात को समझते हैंl

 

(3)  होते कहीं वही हम लोग,

       कौन भोगता फिर यह भोग?

      वह उन्हीं अन्नदाताओं के सुख आज दु:  हटते हैं

      हम राज्य लिए मरते हैंl

 

प्रसंग:  प्रस्तुत  पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक 10 में श्री मैथिलीशरण गुप्त के महाकाव्य 'साकेत' के नवम सर्ग में से ली गई हैl इसमें 'साकेत' की नायिका उर्मिला  किसानों के जीवन की प्रशंसा करती हैl

 

व्याख्या:  उर्मिला कहती है कि यदि हम लोग भी किसान होते तो राज्य की उलझनो से उत्पन्न कष्टों को कौन भोगता है उनका कहने का भाव यह है कि राज्य करना कोई सरल कार्य नहीं हैl राज्य वहन करने के लिए अनेक प्रकार के कष्टों को सहर्ष झलना पड़ता हैl उर्मिला कहती है कि किसान हमारे अन्नदाता हैl इनकी सुख समृद्धि  देखकर  हमारे अनेकों कष्ट दूर हो सकते हैं अर्थात यदि  प्रजा सुखी है तो राजा अपने आप ही आनंदमई अवस्था में पहुंच जाता हैl परंतु यह अफसोस की बात है कि सब कुछ समझते हुए भी हम राज्य के घमंड में मरते रहते हैंl