परीक्षा में अच्छे अंक पाना ही सफलता का मापदंड नहीं
यह ठीक है कि
परीक्षा में अच्छे अंक
पाने वाले का सभी
जगह सम्मान होता है। उसका
आत्मविश्वास
बढ़ता है और अच्छे
भविष्य के लिए उसका
रास्ता आसान हो जाता
है। किन्तु
सिर्फ
यही सफलता का मापदंड नहीं
हैं। कम अंक प्राप्त
करके भी समाज में
प्रतिष्ठित स्थान
प्राप्त
किया जा सकता है।
अकादमिक क्षेत्र के अलावा अन्य
क्षेत्र भी हैं। अपनी
रुचियों और
क्षमताओं
को पहचानकर अपने मनपसंद क्षेत्र
में परिश्रम व दृढ़निश्चय के
सहारे कूद पड़ने पर
अपार
सफलता मिल सकती है।
स्कूल स्तर पर औसत
दर्जे के समझे जाने
वाले वैज्ञानिक
आइंस्टाइन
ने बाद में अद्भुत
आविष्कार किए। मुंशी प्रेमचंद
ने दसवीं कक्षा द्वितीय श्रेणी में
पास
की और दो बार
फेल होने के बाद
इंटरमीडिएट कक्षा पास की। इसके
बावजूद भी पूरे विश्व
में
वे हिंदी के उपन्यास सम्राट
के रूप में जाने
जाते हैं | सचिन तेंदुलकर, महेंद्र
सिंह धोनी क्रिकेट
में
अच्छे प्रदर्शन की वजह से
जाने जाते हैं न
कि अकादमिक तौर पर। इसी
तरह अनेक स्वतंत्रता
सेनानी,
खिलाड़ी, संगीतज, गायक, अभिनेता, राजनीतिज, व्यापारी आदि हुए हैं
जिन्होंने
अकादमिक
तौर पर नहीं अपितु
अपने अपने क्षेत्र में
अपनी प्रतिभा के बल पर
सफलता के
शिखर
को छुआ है। अत:
अंकों की तरफ ध्यान
न देकर आशावादी इष्टिकोण
अपनाते हुए हृढ़ता
के साथ आगे बढ़ना
चाहिए।